सिर्फ तर्क करने वाला दिमाग एक ऐसे चाकू की तरह है,जिसमें सिर्फ धार है,वह प्रयोग करने वाले का हाथ रक्तमय कर देता है - रवींद्र नाथ टैगोर

Explanation...


इस लेख का सफर शुरू करने  पहले हमको सबसे पहले अच्छी तरह  से यह जानने और समझने की जरूरत है कि तर्क क्या है ??
तर्क शब्द की उत्पत्ति अंग्रेजी भाषा के Logic शब्द से हुई जिसका हिंदी अर्थ है  - तर्क।  इस शब्द को Argument के नाम से भी जाना जाता है।
किसी बात पर अपनी बात रखने के लिए कब कहां कौन और कैसे प्रश्नसूचक शब्दों के प्रयोग से  जो तथाकथित शब्दों का समूह निकालकर आता है उसे हम तर्क के रूप में देख सकते हैं। तर्क के द्वारा हम अपनी कहीं गई बात को किसी दूसरे व्यक्ति पर लादने अथवा थोपने का कार्य करते हैं,चाहे सामने वाले व्यक्ति को यह बात किसी कोने में चुभ ही रही हो । तर्क के द्वारा हम अपनी कही गई बात को मनवाते हैं, किसी अनसुलझे व्यक्ति को राज़ी करते हैं  ना कि उसके अनुसार कोई कार्य करते हैं सामने वाले व्यक्ति को अच्छा लगे या बुरा।

तर्क एक समस्या के रूप में 

वैसे अगर सही रूप से देखा जाए तो तर्क करना कोई बुरी बात नहीं है। तर्क के माध्यम से कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति या किसी अन्य समूह के सामने खुद को सिद्ध करने की कोशिश करता है,लेकिन अभी हमें मंथन इस बात पर करना है की यही तर्क रूपी ज्ञान अथवा सोच किस वक़्त जहरीली चाकू बन जाती है जो तर्क करने वाले व्यक्ति अर्थात हमको हमीं के कारण नुकसान पहुंचा जाती है?  और इतने चुपके से कि हानि हमारे भीतर आ भी जाती है और हमें पता तक नहीं चलता।
 जब हममें से कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति किसी मौज़ू(विषय) पर अपने विचारों से एक दूसरे का सामने अपनी बातें रख रहा होता है तो हम दोनों अपने अपने सोच , निर्णय, समझ के स्तर पर अपना तर्क रख रहे होते हैं ।
सब कुछ ठीक ठाक चल रहा होता है,लेकिन समस्या वहीं तुरंत उत्पन्न हो जाती है जब हम अपने तर्क को तो तर्क समझते हैं लेकिन सामने वाले व्यक्ति के तर्क को कुतर्क मान लेते हैं। वहीं बस वहीं सारा मामला पलटकर एक नया और दूसरा रूप ले लेता है और हमारे सामने परिणाम उसका क्या होता है ____ शून्य!
मान लीजिए आपका ही तर्क जिसे आप तर्क मान रहे हैं वो कुतर्क हो और सामने वाले व्यक्ति का तर्क शुद्व, सही तर्क हो तो जैसा कि "रवीनद्रनाथ टैगोर जी" ने कहा है कि हांथ रक्तमय हो जाता है। अतः आपका अपना हांथ इस तरह रक्तमय हो जाता है कि सबसे पहले तो अगर आपका तर्क सही नहीं था और आपने अपने पत्थर रूपी तर्क को ही तर्क मनवाया और सामने वाले का मुंह बंद करवा दिया ।
तब सबसे पहले आप  उस तर्करूपी जानकारी/ज्ञान से महरूम/वंचित रह जाएंगे जो आपके साथ  बहुत ही बुरा होगा।
और दूसरी बात हो सकता है कि आप उस व्यक्ति  से को पहले से चला  आ रहा संबंध था,जिसकी वजह से आप दोनों का एक जगह बैठना हुआ था उस संबंध में ज्यादा नहीं तो थोड़ा बहुत  तो किसी ना किसी कोने में तीखापन आ ही जायेगा और ये भी आपके लिए सही नहीं होगा ,क्योंकि इससे आपका अपना हांथ सुर्ख हो सकता है।

यदि आप अपने किसी अध्यापक से तर्क कर रहे हैं और ऐसा कुछ हो जाता है  तो आप के लिए उनके मन में थोड़ा सा तो नकारात्मकता आ ही जायेगी क्योंकि आपने अपने तर्क को तर्क और उनके तर्क को कुतर्क माना है।

यदि आप अपने अभिवावक से तर्क कर रहे हैं और आपकी कही गई बात कुतर्क साबित होती है,आपके लिए अच्छी बात साबित नहीं हो सकती। क्योंकि आप तर्क को समझने में विफल हुए ।

यदि आप अपने किसी दोस्त  तर्क कर रहे हैं    और उसको कुतर्की बना देने और खुद को गलत होने के बाद भी सही साबित कर दिए तब हो सकता है आपकी दोस्ती में हमेशा के लिए दरार आ जाए और वो दरार आपके लिए हानिकारक हो। अतः ऐसा तर्क ना करें कि आपको ज्ञान भी ना मिले और आप उपरोक्त रिश्ते भी हार जाएं ।

तर्क करें लेकिन सिर्फ तर्क ही न करें 

नतीजतन निष्कर्ष यह निकल कर सामने आता है कि तर्क करना और तर्क सुनना कुछ भी गलत नहीं है, परेशानी तब उत्पन्न होती है,जब हम अपने तर्क रूपी कुतर्क को सही मानकर उसमें अंधे होकर सामने वाले व्यक्ति का तर्क नहीं समझ पाते।जिसका खामियाजा हमें भुगतना ही पड़ता है।
अतः हमें चाहिए कि हम सिर्फ तर्क ना करें बल्कि तर्क करें और तर्क को सुनें भी,जिससे संबंधों की वार्ता भी बनी रहे और अच्छे ढंग से सम्पन्न हो सके तथा हमें वास्तविक ज्ञान भी मिल सके,और हमारे बीच संबंधों का फूल भी सूखने से बचा रहे और महक सबके साथ बनी रहे ।

Comments

  1. I am not satisfied with this answer

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  2. I want some more
    Instead of these which are given by u their

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