मानवरूपी परिन्दे बन रहे दरिंदे || Social palliative

समाज : वह जगह जहां पर सभी मजहब सभी धर्मों के लोग आपस में मिलजुलकर अपने परिवार और बच्चों के साथ हंसी ख़ुशी अपना  जीवन यापन करते हैं।और अपने ज़िंदगी के लम्हों को देखे हुए सपनों की राह पर चल कर बीताते हैं।समाज ऐसा समाज जहाँ पर माँ, बापू, बहन सब का समाज लेकिन जब उसी समाज में कुछ दरिंदें अपनी बहन, अपनी बेटियों, अपने देशवासियों, अपने साथियों,अपने दोस्तों, अपने साथ साथ रह रहे लोगों के साथ दरिंदगी करते दिखते हैं तो लगता है तो शक भी होने लगता है कि क्या यह वही समाज है जहां हम सब रहते हैं,जिसको हमारे पुरखों ने हमें रहने के लिए हम सबको जीने के लिए दिया है??? नहीं समझ मे आता कि जो दरिंदें ऐसा काम करते हैं क्या वो इसी मानवरूपी समाज से ही हैं, क्या उनके घर मे कोई बहन,बेटियां नही हैं?? क्या हमारा समाज ये भूल चुका है कि इंसानियत नाम की भी कोई चीज होती है?
                              ऐसा ही कुछ हुआ प्रतापगढ़ शहर के टेऊँगा नाम के एक गाँव में जहाँ पर राबिया नाम की खातून के साथ बदसलूकी की गई और जब अपने आप का बचाव करने लगी तो उसके साथ इतनी दरिंदगी की गई  कि लिखकर बता पाना तो मुश्किल काम ही है, मृत शरीर देखने के बाद लोंगो का दिल कांप उठा।क्या उन दरिंदों के अंदर भी दिल धड़क रहा था जो इस घटना का अंजाम दिए। दिल तो नही रहा होगा निश्चित ही पत्थर ही रहा होगा।पूरे ज़िले में मातम छाया हुआ है, दहशत फैली हुई है।आखिर कौन है इस अंजाम के पीछे, किसका हाथ इतना मजबूत था कि उसने ऐसा करने की हिम्मत जुटा पायी? 
                             अरे मेरे देश मे बैठे सत्ताधारियों ये किसी मज़हब के किसी एक जाति की जान नही ली गयी है,किसी एक समुदाय से सम्बंधित क़त्ल नही हुआ है। ये इंसानियत का क़त्ल हुआ है इंसानियत का जिसमे एक दिल धड़कता है और उसकी हर एक धड़कन में वतन का वजूद है। वतन का लहू बहाया गया है। चाहे उस ख़ातून को गीता मान लो,मरियम मान लो या सीता मान लो लेकिन है तो एक औरत जात ही न,है तो एक देशवासी ही न ,है तो एक मां ही न,है तो एक बेटी ही न , है तो एक बहन ही न मान लो कुछ भी मान लो और दिला दो उसे इंसाफ,दिला दो जल रहे समाज को न्याय, दिला दो उसके लहू के एक एक क़तरे का हक़... नही होगा। कुछ नहीं होने वाला है।आलम तो ये है कि घटना के बहुत देर बाद तक इस जिले से कोई आधिकारिक व्यक्ति उस परिवार से हाल चाल लेने तक भी नही पहुंचा था, कोई आर्थिक मदद के लिये भी नहीं सामने आया ,जब वो ज़िंदगी और मौत से लड़ रही थी तो कोई भी उससे उसका हाल लेने नही आया।
हमारी देश व्यवस्था, हमारा समाज कितना बदल चुका है इंसान, इंसान को खा जा रहा है दुनिया का सबसे समझदार प्राणी इंसान ही होता है और इंसान ही इंसान को खा जा रहा है ये किसी विडंबना है हमारे समाज की हमारे देश की।वो तो अब चली गयीं दुनिया से,लेकिन जो समाज मे बचें हैं उनके बचाव के लिए कुछ कर दिजिएगा मेरे देश के बेशर्म सत्ताधारियों... उनको सबक़ तो सिखा ही देना जो इस दरिंदगी से संबंधित हैं ।उम्मीद है कि हमारे समाज के लोग मिलकर, क़ानूनी स्तर और आर्थिक रूप से उस परिवार की मदद करेंगे और उन दरिंदों को सबक़ भी अवश्य सिखाया जाय। जो हमारे संविधान का आदेश हो...!
【जय हिंद_जय भारत】

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