||Books|| The true friend ||क़िताबें|| सबसे अच्छी दोस्त

हमारे सम्पूर्ण जीवन में बहुत से दोस्त आते जाते हैं और कुछ ऐसे भी दोस्त आते है जो अपना नाम हमारी पूरी ज़िंदगी के लिए हम सभी के साथ छोड़ जाते हैं।उन सबसे अलग हमारे लिए हमारे दोस्त का स्थान ले सकती हैं किताबें जोकि हमे बहुत ज्ञान देने की क्षमता रखती हैं और सभी परिस्थितियों में साथ निभाने का वादा भी करती हैं।और हमारे अंदर बैठे हुए फालतू के दहशत को भी दूर भगाने का काम करती हैं ,तो हमे चाहिए कि हम अपनी क़िताबों को एक दोस्त का दर्जा दें, आगर हम किताबों को अपना पक्का साथी बनाना चाहते है तो हमे क्या करना होगा... चलिये देखते हैं....
सबसे पहले तो हमे चाहिए कि हम किताबों को स्वत: अध्ययन करने की आदत डालें और अध्ययन करते समय एकाग्रचित्त रहें।  स्वाध्याय की आदत एक बड़ा सवाल है क्योंकि इसका संबंध समाज और शिक्षा से गहरे तक जुड़ा हुआ है यह बड़ी विडंबना है कि समाज में परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करना ही पढ़ाई का एकमात्र उद्देश्य माना जाता है चाहे वह स्कूल परीक्षा हो या फिर प्रतियोगी परीक्षा। इसलिए उपन्यास कहानियां आदि बहुत उपयोगी नहीं मानी जाती बल्कि विद्यार्थी जीवन में इन्हें पढ़ना समय की बर्बादी माना जाता है।बच्चों को इनसे दूर रखा जाता है जबकि स्वाध्याय की आदत बचपन से ही विकसित करनी होती है और विकसित होती है स्वाध्याय आनंद जिज्ञासा और रुचि का मामला है जो बचपन में ही पैदा किया जा सकता है। बच्चों को पढ़ने के आनंद को महसूस कराने की जरूरत है ताकि वे पुस्तकों से दोस्ती करने के लिए शिक्षा और परीक्षा के संबंधों में और ढांचे को भी बदलना पड़ेगा जब तक शिक्षा परीक्षा तक सीमित होगी तब तक स्वाध्याय की आदत पड़ना मुश्किल है।साहित्य को आम पाठकों तक पहुचना भी जिम्मेदारी भरा कार्य होता है, पाठकों तक पहुंचाने के लिए  लेखकों को किस तरह के प्रयास करने चाहिए चलिए देखते हैं- लेखक का काम केवल लिखने तक सीमित नहीं होना चाहिए बल्कि लिखे हुए लेखों को पाठकों तक पहुंचाने का दायित्व अपने हाथ में लेना चाहिए यदि आप का लिखा हुआ पाठक तक नहीं पहुंच रहा है तो सिर्फ लिखने की क्या सार्थकता?? अच्छी पुस्तकों में और पत्र पत्रिकाओं की जानकारी विभिन्न मंचों के माध्यम से पाठकों तक पहुंचाना ,स्कूलों-कालेजों में जाकर शिक्षकों, विद्यार्थियों से इनके बारे में चर्चा, करना छोटी-छोटी साहित्य गोष्ठियों का आयोजन करना, अपने पुस्तकालय को सार्वजनिक करना, व्यावसायिक साहित्यिक पत्रिकाओं को वितरित करना जैसे कार्यों को करने चाहिए। झोले में किताब बेचने भी पड़े तो उसके लिए तैयार रहना चाहिए।इन सब के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल भी किया जा सकता है जैसा कि आप जानते हैं कि सोशल मीडिया हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई है।एक आदमी अपने आप को अधूरा मानता है और वह अधूरा होता भी है अगर वह सोशल मीडिया से नही सम्बन्ध रखता है तो ,आज के युग के हिसाब से अगर कोई आदमी सोशल मीडिया से जुड़ा हुआ नहीं है उसे उस समय की महत्वपूर्ण घटनाएं चर्चाएं पानी में असमर्थ होता है।
 पत्रिकाएं औऱ किताबें अपने आप में एक महत्वपूर्ण स्कूल है एक ऐसा स्कूल जिसमें बच्चों को दिल दिमाग और हाथ की क्षमता विकास का अवसर मिलता है इसके बहाने बच्चा लिखता है और लिखने के बहाने पड़ता है इस तरह उसके भीतर लिखने और पढ़ने की आदत विकसित होती है।अभी भी एक बड़ा वर्ग जिस तक कागज पेंसिल की उपलब्धता बड़ी बात है ऐसे में पत्रिका सस्ता सूर्य और प्रभावशाली साधन है इसे कहीं भी और कभी भी न्यूनतम साधना से तैयार किया जा सकता है यह बड़ी बात यह है कि पत्रिका बच्चों को लेखन संपादन और प्रबंधन कौशल के विकास का एक अवसर प्रदान करती है। बच्चों में सामूहिकता का मूल्य दीक्षित करती है ।इसके बहाने बच्चे लोग जीवन संस्कृति इतिहास और अर्थव्यवस्था को पहचानते हैं,अपनी जमीन से उनका जुड़ाव बढ़ता है और चिंतन की प्रक्रिया गहरी होती है। बच्चों में रचनात्मकता होती है यह दूसरी बात है कि कुछ ही की रचनात्मकता सामने आ जाती है और बहुतों की छुपी रह जाती है या फिर कुछ खास तरह की रचनात्मकता हो को हम अधिक महत्व दे देते हैं और शेष की उपेक्षा की जाती है इसके बीच राज्यवार अंतर करना ठीक नहीं होगा एक ही राज्य के भीतर आपको अलग-अलग तरह की रचनात्मकता बच्चों में शिक्षा की मिलती है-पेड़ पर चढ़ने, झाड़ू बनाने ,कमरा साफ करने की ,खेती-बाड़ी का काम करने, मछली पकड़ने, खाना बनाने की रचनात्मकता होती है।जरूरत है तो उस शब्द को पहचानने की मेरा मानना है कि वही पेड़ आसमान में अधिक फैल सकता है जिसकी जड़ें जमीन में अधिक गहराई में हों। 

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