एक विवेक मस्तिष्क का होता है और विवेक दिल का - रवींद्र नाथ टैगोर Ravindra Nath Tagore

माननीय रवीन्द्र नाथ टैगोर जी के इस पंक्ति को शब्द देने  से पहले हमें ये जानना होगा कि - 
क्या है विवेक ? 
और क्या है मस्तिष्क ?
और दिल का क्या कार्य है ?

तो सबसे पहले हम दिल के बारे में जानने और समझने की कोशिश करते हैैं- दिल हमारे सीने के बाएं ओर स्थित मांस का वह लोथड़ा होता है जो पूरी शरीर में खून को रास्ता देने कार्य करता है ,अगर यह काम करना बंद कर दे तो शरीर का कोई अस्तित्व नहीं रहेगा । तो दिल हमारे शरीर का बहुत महत्वपूर्ण भाग होता है जो हमेशा अपनी गति में रहता है जिसके काम करने से निकली हुई ध्वनि हो धड़क कहा जाता है। जब दिल की धड़कन सामान्य गति से तेज हो जाती है अर्थात  दिल तेजी से धड़कने लगता है तो उस वक़्त ब्लड प्रेशर ज्यादा तेज रहता है।
कहते हैं जब कोई व्यक्ति अपने दिल की सुनता है अर्थात कोई कार्य दिल से किया जाता है तो उस कार्य में सफल होने की संभावाएं बढ़कर दोगुनी हो जाती हैं और वह व्यक्ति कार्य में सफल हो जाता है।

अब आती है मस्तिष्क की बारी - मस्तिष्क हमारे शरीर का वह भाग होता है जिसके दिशा निर्देशों से हमारे शरीर के अंग कार्य करते हैं । जब हमारा माइंड / मस्तिष्क किसी कार्य को करने के लिए सोचता है तो उसके द्वारा शरीर के तमाम प्रकार के अंगों को अपने अनुसार निर्देश और आदेश दिया जाता है तब अन्य सभी अंग कार्य को अंजाम तक पहुचाते हैं । अर्थात मस्तिष्क का रोल भी हमारे शरीर के जीवित रहने और कार्य करते रहने के लिए बेहद जरूरी होता है।

अब हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि विवेक नाम की चीज क्या है? विवेक शब्द का अर्थ होता है -"भला बुरा ज्ञान" अर्थात किसी व्यक्ति के पास उसके स्तर के अनुरूप जो भी ज्ञान होता है उसे उस व्यक्ति का विवेक माना जाता है । सभी व्यक्ति का विवेक अलग अलग स्तर पर होता है । कोई भी व्यक्ति अपने रोजमर्रा के निजी जीवन में जब कोई कार्य करता है या करने के लिए सोचता है करता है तो वह अपने निजी विवेक का प्रयोग करके ही उस कार्य को अंजाम देता है । अर्थात विवेक किसी व्यक्ति का वह निजी ज्ञान होता है जिसके अनुसार वह सोचने, समझने ,करने और कार्य को अंजाम  देने का कार्य करता है।

अब हम आते हैं अपने टॉपिक पर ...रवीन्द्र नाथ टैगोर जी ने कहा कि  एक विवेक मस्तिष्क का होता है - अर्थात हमारे शरीर में दो प्रकार के विवेक कार्य करते हैं , अर्थात जब हम कोई कार्य करते हैं और सोचते समझते हैं तो उस कार्य में दो विवेक कार्य करते हैं और तब कार्य पूरा होता है।
जब हम किसी कार्य को बहुत सोच सझकर, अन्य व्यक्तियों से उस कार्य को करने से पहले राय लेकर या उसका फायदा/नुकसान का आंकड़ा लगाकर या किसी पैमाने पर रखकर करते हैं तो उस वक़्त हम अपने मस्तिष्क के विवेक का उपयोग करते हैं।हमारा मस्तिष्क हमेशा यह सोचता है कि हमारा वो कार्य पूरा हो हम सफल हो जाएं , हमें किसी प्रकार की मुसीबत ना झेलनी पड़े , हम लहरों से लड़ते हुए आसानी से निकाल जाएं,और अपनी मंज़िल तक अपना सफर तय करें। मस्तिष्क हमेशा जब कोई कार्य करने के लिए सोचता है तो बड़े ही आसान अंदाज में अपना कार्य करने वाले को रखना चाहता है।

दूसरी ओर टैगोर जी ने कहा - मस्तिष्क के अलावा विवेक दिल का भी होता है! अर्थात हमारे शरीर में एकत्रित विवेक में से और विवेक दिल में  रखा हुआ होता है या होता है। जब हम कोई कार्य दिल के विवेक का प्रयोग करते हैं तो हम कोई कार्य अपनी खुशी के लिए करते हैं अर्थात एक रूप में हम कह सकते हैं कि जब हम कोई कार्य दिल से या हृदय से करते हैं तो हम करते नहीं वह हो जाता है अर्थात उसको करने करने के लिए खुद पर बहुत दबाव नहीं बनाना पड़ता अर्थात उस कार्य को करने के लिए हमारे अंदर से एक अलग प्रकार की ऊर्जा निकलती है और कार्य को अंजाम तक पहुंचाने में हमारी मदद करती है और हम उस कार्य को हंसते-खेलते हुए कर जाते हैं । कभी कभी तो हम दिल से लिए गए फैसले के द्वारा किए गए कार्य में थोड़ा भी थकते ही नहीं और हमारा कार्य अपने अंजाम तक पहुंच भी जाता है।लेकिन दिल के विवेक के द्वारा किए गए कार्य में हम बहुत ज्यादा सोचते और समझते नहीं है कि इसका परिणाम क्या होगा ,परिणाम तो हमें बाद में ही मिलता है हर प्रकार के द्वारा करने में लेकिन दिल से किए गए कार्य में हम पैमाना बनाकर नहीं मापते। लेकिन दिल से किए गए कार्य , मस्तिष्क से किए गए कार्य की तुलना में अधिक सफल होते हैं ।

नतीजतन निष्कर्ष सामने यह निकलकर आता है कि हम कोई कार्य दिल के विवेक का प्रयोग करके करें या मस्तिष्क का - दोनों प्रकार के कार्यों का परिणाम आने का समय वही होता है लेकिन मस्तिष्क से किए गए कार्य की तुलना में दिल से किया गया कार्य ज्यादा सफल और अच्छे तरीके से संपन्न होता है। अर्थात हमें चाहिए कि हम कोई कार्य अगर दिल के विवेक के आधार पर करें तो मस्तिष्क के विवेक की सहायता जरूर लें , करें अपने दिल की लेकिन मस्तिष्क का भी सहारा ले लेने से कार्य की गति और बढ़ जाएगी और हम अपनी मंज़िल पर सही समय और सही रूप में पहुंच जाएंगे जिसकी हमें जरूरत है। पहले हम दिल की सुनें औए फिर साथ में दिमाग का भी सहारा ले लें

                              दिल की सुनें लेकिन दिमाग़ के साथ क्योंकि दिल हमेशा सही और सच्चा रास्ता दिखाता है 

©SakibMazeed

Comments

Post a Comment