उपभोक्ताओं पर प्रचार का प्रभाव | Effect of advertisement on consumers


इस मौजू पर कुछ लिखने से पहले चलिए यह जानने की कोशिश करते हैं कि यह जो शब्द है "उपभोक्ता" तथा "विज्ञापन" यानी कि प्रचार प्रचार इसका क्या अर्थ है...
उपभोक्ता
          "एक उपभोक्ता वह व्यक्ति होता है जो  किसी वस्तु अथवा सेवा को अपने लिए अथवा किसी अपने के लिए खरीदता है।"
विज्ञापन
"किसी प्रोडक्ट अथवा सेवा को बेचने के उद्देश्य से किया जाने वाला जनसंचार प्रचार या विज्ञापन कहलाता है"
                                       अब बात आती है प्रचार के प्रभाव की तो, मैंने प्रचार के प्रभाव को समझने के लिए इसके तीन अहम पहलुओं या आप कह सकते हैं प्रकारों को अपने लेख का हिस्सा बनाया है जो सामान्यतः हमारी रोजमर्रा की ज़िन्दगी में हमसे रूबरू होते हैं 

1]-अजब गजब प्रचार
अजब गजब प्रचार वे  प्रचार होते हैं जो किसी वस्तु अथवा सेवा की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए उपभोक्ताओं को इस प्रकार दिखाए जाते हैं कि उनमें आकर्षण आ जाए उस प्रोडक्ट के प्रति उनमें एक नया विश्वास आ जाए ऐसे विज्ञापनों में आकर्षण अधिक और लॉजिक अथवा तथ्य  कम देखने को मिलता है और इनमें अधिकतर सच्चाई देखने को नहीं मिलती है। तो चलिए यह जानने की कोशिश करते हैं कि ऐसे प्रचार उपभोक्ताओं को किन-किन अहम् पहलुओं से प्रभावित कर पाते हैं..... 

  • Public Figure


                        जब कोई कंपनी किसी प्रोडक्ट को लांच करती है तो उसका Main motive होता है कि हमारा प्रोडक्ट सबसे ज्यादा लोकप्रिय बने  और उन्हें पता होता है कि अगर प्रोडक्ट को पॉपुलर बनाना है लोकप्रिय बनाना है तो प्रचार को लोकप्रिय बनाओ और अगर प्रचार  को लोकप्रिय बनाना है तो किसी लोकप्रिय  चेहरे यानी किसी पब्लिक फिगर का उपयोग करो , जिससे उपभोक्ताओं के दिलों पर आसानी से तथा कम समय में राज किया जा सके जब किसी विज्ञापन में कंपनी ओनर्स किसी ऐसे चेहरे का इस्तेमाल करते हैं जो ठीक-ठाक ढंग से पॉपुलर हो तो उसका प्रभाव उपभोक्ताओं पर भारी मात्रा में पड़ता है और उपभोक्ता आसानी से उस प्रोडक्ट अथवा सेवा के प्रति आसानी से विश्वास कर लेते हैं बिना कुछ सोचे समझे अपना निर्णय ले लेते हैं और उस प्रोडक्ट अथवा सेवा को खरीद लेते हैं

  •  अजीबो गरीब तथ्य



इस प्रकार के प्रचारों  में ऐसे अजीबो गरीब गरीब तथ्य देखने को मिलते हैं जिसको देखकर अचंभित हो जाना होता है उस प्रचार को हम देखते ही रह जाते हैं,आंखें फटी की फटी रह जाती हैं और उसे पाने की कोशिश में लग जाते हैं। मुमकिन है कि एक व्यक्ति एक इंसान क्या पाने की कोशिश करता है? कोई भी व्यक्ति  वह पाने की कोशिश करता है जिसको वह पहली बार देखा हो और देखते समय उस प्रोडक्ट के बारे में पूरी जानकरी ना मिल पाई हो जब कोई ऐसे विज्ञापन उपभोक्ताओं की आंखों के सामने आता है तो एक उपभोक्ता उस विज्ञापन में वही देख पाता है जो उसे दिखाया जाता है ना कि वह जो वह देखना चाहता है अतः इसमें कोई शक नहीं है कि जो वह देखना चाह रहा है उसको देख पाने और जानने के लिए प्रोडक्ट खरीद ना पड़े

  •  झूठ

सभी विज्ञापनों में तो नहीं कहा जा सकता लेकिन अधिक प्रचारों में विभिन्न पहलुओं के साथ लोकप्रियता को मद्दे नज़र रखते हुए  झूठ और सच को मिला करके दिखाया जाता है झूठ और सच के साथ-साथ ऐसे तत्व शामिल कर दिए जाते हैं जो उपभोक्ताओं पर इमोशनल अत्याचार करने का काम करते हैं। 
                                                                 तो हमने देखा कि कैसे सभी पहलुओं को मिक्सअप किया जाता है इन तीनों पहलुओं को मिलाकर (पब्लिक फिगर,अजीबोगरीब तथ्य, झूठ) मिलाकर एक मसाला तैयार किया जाता है, और उस चटपटे मसाले को उपभोक्ताओं के सामने परोस दिया जाता है उसके बाद उपभोक्ताओं में उसके प्रति ऐसी लहर पैदा हो जाती है कि उपभोक्ता मदहोश हो जाते हैं और वह अपने साथ साथ उपभोक्ताओं को बहा  ले जाने का कार्य करती है क्योंकि उपभोक्ताओं में उस प्रचार बनाने वाले व्यक्ति से  ऊंचा सोचने की शक्ति नहीं होती हम यह कह सकते हैं कि ऐसे विज्ञापनों का उपभोक्ताओं पर नकारात्मक  प्रभाव अधिक तथा सकारात्मक प्रभाव कम  पड़ता है

2]-सरल एवं सजग प्रचार

ऐसे प्रचार वे प्रचार  होते हैं  जो किसी प्रोडक्ट अथवा सेवा को लोकप्रिय  उद्देश्य उपभोक्ताओं के सामने दिखाए जाते हैं इसका उद्देश्य जनता को जागरूक करना तथा जनता में फैले अंधविश्वास को दूर करना तथा सही और गलत में  पहचान कराना होता है  ऐसे विज्ञापन अधिक तौर पर सरकारी संस्थाओं द्वारा चलाए जाते हैं
जैसे-सड़क परिवहन राजमार्ग मंत्रालय, उपभोक्ता मामले मंत्रालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय
                         साथ ही साथ ऐसे विज्ञापन वे  विज्ञापन होते हैं जो जनता अथवा उपभोक्ताओं को आसानी से समझ में आ जाते हैं तथा इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। तो चलिए देखते हैं ऐसे विज्ञापन उपभोक्ताओं पर किन-किन अहम्  पहलुओं से अपनी छाप छोड़ पाते हैं


  • जागरूकता

 आमतौर पर अगर हम प्राइवेट कंपनियों  प्रचारों को देखें तो कोई भी जागरूकता नजर नहीं आती लेकिन इस प्रकार के विज्ञापनों  का उद्देश्य उपभोक्ताओं को जागरूक करना होता है

  • सही और सटीक तथ्य

 ऐसे विचारों की यह खूबी होती है कि इनमें कही और बताई गई बातें और तथ्य सही और सटीक होते हैं तथा शब्दों का  चित्रण इस ढंग से किया जाता है कि वह  समाज के  हर वर्ग के लोगों की समझ में आसानी से आ जाते हैं । इसे समझना बिल्कुल ही सरल होता है जिसे आसानी से समझा जा सकता है इसे समझने के लिए उपभोक्ताओं को किसी प्रकार की समस्या या उलझन का सामना नहीं करना पड़ता

  • सच्चाई

 जागरूकता फैलाने वाले ऐसे विज्ञापनों की सबसे खास बात यह होती है कि इन में वर्णित सभी प्रकार की बातों में सच्चाई सच्चाई पाई जाती है जिससे उपभोक्ताओं पर  कही गई बातों से कोई नकारात्मक प्रभाव  नहीं पड़ता है
                               इन तीन पहलुओं ( जागरूकता,सही और सटीक तथ्य  तथा सच्चाई) को मिलाकर सरकारी संस्थाओं द्वारा एक ऐसी पॉलिसी कंडक्ट की जाती है जिसका उद्देश्य विज्ञापनों  को लोकप्रिय बनाने का  नहीं बल्कि उपभोक्ताओं तक सही जानकारी पहुंचाना होता है कभी-कभी ऐसे विज्ञापनों में ब्रांड एंबेसेडर के तौर के तौर पर पब्लिक फिगर यानी किसी लोकप्रिय  चेहरे का प्रयोग किया जाता है लेकिन ऐसे प्रचारों  से जनता में एक सकारात्मक प्रभाव पड़ता है

3]-Propaganda  (मत प्रचार,अधिप्रचार )

 यह इस लेख का सबसे महत्वपूर्ण भाग  है  इसके बारे में कुछ कहने की कोशिश करता हूं क्योंकि अगर उपभोक्ताओं और जनता पर इसका असर पड़ता है तो समाज पूरी तरह से डगमगा जाता है बिखर जाता है तो चलिए जानते हैं इसके बारे में- प्रोपेगेंडा अथवा मत प्रचार प्रचार वह  प्रचार होता है जो किसी व्यक्ति या किसी  राजनीतिक संस्था द्वारा किसी बड़े जन समुदाय की राय और व्यवहार  के रुख  को एक अलग दिशा में मोड़ने के लिए जन संचार किया  जाता है जिससे उस संस्था का लाभ  होता है जो ऐसे प्रचारों का संचालन करवाती है
ऐसे  प्रचार जनता के लिए सबसे खतरनाक प्रचार होते हैं जिसकी सच्चाई और परिणाम सिर्फ और सिर्फ उस संस्था को पताहोता  है जो प्रोपेगेंडा को कंडक्ट करती है तो चलिए देखते हैं कि यह प्रोपेगंडा यानी कि मतप्रचार किन-किन पहलुओं से उपभोक्ताओं पर अपनी छाप छोड़ता है

  • झूठ

 किसी भी प्रोपेगेंडा में झूठ की  एक अहम  भूमिका होती है जनता में जो सच्चाई होती है उसे कमजोर तथा खत्म करने के लिए जनता में झूठा झूठ फैला दिया जाता है जिससे उपभोक्ताओं को कुछ समझ में नहीं आता और झूठ अपना सिक्का जमा लेता है और जो प्रोपेगेंडा क्रिएटर होते हैं जो प्रोपेगेंडा को चलाने वाले होते हैं उनकी यह पॉलिसी होती है कि "झूठ तब तक बोला जाए जब तक सच न मान लिया जाए" इसी पॉलिसी का अनुकरण करते हुए जनता में ऐसा झूठ फैला दिया जाता है कि सच्ची सच्चाई की पहचान कर पाना मुश्किल हो जाता है जिसे देश और समाज को एक भारी मशक्कत झेलनी पड़ती है

  • धर्म

 एक राजनीतिक संस्था जब कोई प्रोपेगेंडा फैलाने की तैयारी करती है तो उसे सबसे ज्यादा संभावना धर्म में होती है क्योंकि कोई भी व्यक्ति खुद को पूरी तरह से बलिदान के तौर सारी दुनिया तथा परिवार को भुलाकर  पर दो ही अवस्था   में लगाता है-प्यार तथा धर्म 
                                                 जब कोई व्यक्ति देश प्रेम में सरहद पर होता है तब वह सबकुछ भूल कर लग जाता है या तो  जब कोई अपने धर्म की रक्षा कर रहा होता है। इन दोनों अवस्थाओं में वह सब कुछ भूल कर दुनिया की सारी चिंता छोड़कर लग जाता है जिससे प्रोपेगेंडा फैलाने वालों को सबसे ज्यादा ताकत मिलती है और धार्मिक जनता अंधी हो कर इनके फर्जी धार्मिक तथा सांस्कृतिक रक्षा में खुद को झोंक देती है ऐसा होने पर जनता में बुरा प्रभाव पड़ता है

  • डर

 प्रोपेगेंडा फैलाने के लिए जनता में डर भी पैदा किया जाता है और डर फैला कर जनता को कई भागों में बांट दिया जाता है।जब जनता में डर फैला दिया जाता है तो एक  वर्ग अपने डर को खत्म करने के लिए कोई ऐसा कदम उठा देता है कि दूसरा वर्ग खुद ही डर जाता है ऐसा करके समाज में डर फ़ैलाने के साथ-साथ सांप्रदायिक नारे लगवाए जाते हैं। ये तो अपने नेताओं की  ज़ुबान से सुना ही होगा "हिंदुत्व खतरे में है", "इस्लाम खतरे में है"। समाज में डर फैलाने के साथ नफरत भी फैला दी जाती है और इससे एक बहुत ही बुरा प्रभाव समाज को झेलना पड़ता है
                                           प्रोपेगेंडा फैलाने के लिए झूठ,डर,धर्म को मिलाकर युवाओं का प्रयोग करके आज के सोशल मीडिया के जमाने में ऐसी फेक न्यूज़ चला दी जाती है जिसकी पहचान कर पाना बहुत ही मुश्किल काम होता है 60%झूठ और 40% सच को मिलाकर ऐसा मसाला तैयार किया जाता है जो 100% झूठ से भी  ज्यादा खतरनाक होता है इस तरह से उपभोक्ताओं को इस तरह बहका दिया जाता है कि सामाजिक रिश्तो की कश्तियाँ  डागमगाने लगती हैं,लोगों में लोगों में सोचने और समझने की शक्ति समाप्त हो जाती है 
                                                                   सोशल मीडिया के सहारे इतना आसान हो गया है कि कोई भी झूठी खबर पल भर  में हर जगह पहुंच जाती है मौजूदा हालात को देखते हुए पूरी दुनिया को कवर करने वाली बीबीसी न्यूज़ ने बियोंड फेक न्यूज़ नाम की एक मुहिम चलाई थी दुनिया की प्रॉमिनेंट यूनिवर्सिटी ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने अपने एक एनालिसिस में बताया कि जिन तथाकथित शब्दों के गुच्छों से आपकी भावनाओं और इमोशंस के साथ खेला जाए वह फेक न्यूज़ या प्रोपेगेंडा होता है
                                                                   सबसे बड़ी विडंबना है कि उपभोक्ताओं को समझ में कैसे आये कि यह प्रोपगंडा अथवा फेक न्यूज़ है यह एक  सुनियोजित ढंग से फैलाया जाता है हमको आपको तो तब एहसास होता है जब हाथ की डोर ढीली पड़ जाती है तब लगता है कि हमारी पतंग की डोर काटी जा चुकी है।और पतंग की डोर काटा किस डोर ने , जो हमारे समर्थन के लिए हमें मदद  करने का वादा किया था
                                                                   नतीजतन निष्कर्ष यह निकलकर सामने आता है कि हमारी आंखों के सामने आपकी आँखों के सामने अगर कोई शब्दों का गुच्छा धम से गिरता है तो हमें चाहिए कि हम उसको देखें , उसको पहचानें, उसका एनालिसिस करें उसके बाद उस प्रोडक्ट अथवा सेवा को खरीदें अथवा किसी दूसरे को भेजें अन्यथा  उसका आपके सामने होगा और आप देख भी रहे हैं.
©SakibMazeed



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