मुजफ्फरपुर का सुर || The Situation of Muzaffarpur (Bihar)



बिहार के मुजफ्फरपुर अस्पतालों में हो रही बच्चों की मौतों का सैकड़ों हो चुका है जो घटना सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर अस्पतालों में मासूम बच्चों की सासें क्यों रूक जा रही हैं, क्यों डाक्टर बच्चों की जान बचाने में असमर्थ दिख रहे हैं।

[1]-बच्चों की हालत और मौत

                विश्व गुरु कहे जाने वाले भारत देश को आखिर हो क्या गया जो आज हमारी आंखों के सामने ऐसे-ऐसे मंजर आ रहे हैं जिनको देखकर आंखों के साथ-साथ दिल भी पसीज जाता है। भारत में बच्चों की हालत बहुत ही दयनीय है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत दुनिया का वो देश है जिसमें कुपोषण का शिकार होकर मरने वाले बच्चों की संख्या सबसे अधिक है। सारी दुनिया को पीछे छोड़कर भारत कुपोषण के मामले में सबसे आगे है यह बात हम नागरिकों का सीना चौड़ा करती है या और कम कर देती है? मुजफ्फरपुर की अस्पतालों में जो मौतें हुई हैं वो आंकड़ा चिंताजनक है और हम सबको यह बताता है कि हमारे देश की तथाकथित अस्पतालें अब मौत का घर बन रही हैं।

[2]-लीची और सच्चाई

                जब सुशासन बाबू के बिहार की अस्पतालों में होने वाली मौतों के कारण की बात आई तो कुछ सच्चाई से महरूम और पगलाए हुए लोग तथा कुछ TV चैनलों के तथाकथित एंकर ये कहने लगे कि बच्चों की मौतों का कारण लीची बताने लगे क्योंकि इलाके में लीची की खेती काफी मात्रा में देखने को मिलती  है,बच्चों की लीची खाने की वजह  से मौत हुई, ऐसा कहने वाले लोग जब खुद लीची खाते हैं तो उनकी मौत क्यों नहीं होती?
                     आखिरकार बात यह सिद्ध हुई कि अगर समय से बच्चों का टीकाकरण कराया गया होता तो शायद बच्चों की मौत ना होती। अब बात आती है कि टीकाकरण करवाने का काम किसका है? हमारे देश भारत की तो यह पुरानी समस्या है कि जो काम गरीब जनता से जुड़ा हुआ या गरीब जनता के फायदे का है वो कभी समय से पूरा नहीं हो पाता । अगर बिहार में सुशासन बाबू का शासन सही तरीके से चला होता तो शायद देश को यह दुखद घटना ना झेलनी  पड़ती।

[3]-मीडिया का किरदार

              अगर सरल भाषा में कहूँ तो लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहे जाने वाले भारत देश की मीडिया का जो दौर चल रहा है यह बेहद ही नालायक है। देश की अधिकतर बडे़ मीडिया हाउस जिनका मुख्य धारा की मीडिया में कब्जा है वो अपनी सारी जिम्मेदारी, फर्ज भूल चुके हैं। सारे सिद्धांत बेच चुके हैं। एंकर जनता से ऐसा रिएक्ट करते हैं जैसे अदालत का जज हो। मीडिया का सबसे पहला और असली काम है सत्ताधारियों की आंख से आंख मिलाकर सवाल करना और जवाब की मांग करना लेकिन आज की मीडिया ऐसी हो गयी है जो सिर्फ जनता से सवाल करती है। अगर अस्पतालों में असुविधा की वजह से मौतें हुईं तो सवाल सत्ताधारियों और जिम्मेदारों से पूछने के बजाय वहां की नर्सों और डाक्टरों के मुह माइक से ब्लॉक कर देती है। आखिर कौन है जिम्मेदार इन सभी किरदारों का सोचिए?
                  नतीजतन बात ऐसी है कि सुशासन बाबू के शासन क्षेत्र बिहार के मुजफ्फरपुर का सुर बहुत ही दयनीय हो चुका है जिसमें सिर्फ और सिर्फ जनता का लहू जल रहा है जैसे कड़ाही में जलता है तेल...

कलम से......

बच्चों की चीख हुई बेशुर,
 लगता है वक्त बड़ा भंगुर
चलते हैं चलो मुज़फ्फरपुर 
जानेंगे अपने देश का सुर
ये वक्त कहाँ से आया है 
कैसा ये मौसम लाया है
हर तरफ मौत का साया है,हर तरफ मौत का साया है।

आई•सी•यू• की हालत खस्ता है 
बच्चों का सपना सस्ता है
बाबू जी का ये बस्ता है 
और खुला मौत का रस्ता है
ना जाने किसकी काया है
मर गयी सभी की माया है
हर तरफ मौत का साया है, हर तरफ मौत का साया है

सौ से ज्यादा हो चुकी मौत
 फिर भी बेशर्मी छायी है
और कहते हैं "चमकी बुखार"
लीची बेचारी लायी है
और सुनो सुशासन बाबू जी
 ऐसा इन-आम हुआ होता
बच्चे ना मरते सपने में
गर टीके का काम हुआ होता 
वो चैन की नींद में सोया है
जनता ने जिसे जिताया है
हय तरफ मौत का साया है, हर तरफ मौत का साया है

हर फर्ज़ मीडिया भूल गयी 
बनता ही नहीं आकार कोई
हर सुविधा नेता को जैसे-
जनता में नहीं हक़दार कोई
ए•सी• दफ्तर में सोए हैं 
लगता ही नहीं सरकार कोई 
भारत माता के घर में नहीं
 बच्चों का जिम्मेदार कोई
भारत माता भी देख रहीं 
घर-घर में मातम छाया है
हर तरफ मौत का साया है, हर तरफ मौत का साया है

डाक्टर की लापरवाही है 
ये झूठ नहीं ये मिथ्या है
टी•वी• के कई चैनलों पर
 बैठा झूठों का जत्था है
है कलम नहीं आज़ाद यहाँ, 
है सत्य नहीं यह सत्या है
बच्चों नें क्यों सांसे तोड़ी हैं मौत नहीं यह हत्या है

आवाज नहीं उठने पायी है
 न्याय बहुत चिल्लाया है
अब तो मन करता है लिख दूँ 
बच्चों को ज़हर पिलाया है
सच्चाई बैठी है अब भी 
पर झूठ बहुत मंडराया है 
हर तरफ मौत का साया है, हर तरफ मौत का साया है।
©SakibMazeed


Comments