"दिल्ली दर्शन"~असरार जामई || Asrar Jamayee ~ उर्दू के वो बाग़ी शायर जिनको राजीव गांधी ने बुलाकर सुना! और वो नज़्म जो देश में आज के हालात को बयां करती है!
उर्दू ज़ुबान के जाने-माने शायर "असरार जामई जी" जो अभी ज़िंदगी और मौत से लड़ रहे हैं कभी अपने ज़माने में मुशायरों में जान फूंक दिया करते थे। उन्होंने अपने वक़्त में ऐसी-ऐसी रचनाएँ गढ़ी जो आज भी प्रासंगिक बनी हुई हैं और बड़ी दिलदारी के साथ उनके चाहने वाले अपने दामन से लगाकर उनकी रचनाओं को पढ़ते हैं। कभी ऐसा भी वक्त हुआ करता था कि असरार जी समाज और देश में कोई पय आ जाने के बाद कांग्रेस की हुक़ूमत की आंख से आंख मिलाकर अपनी क़लम से बातें किया करते थे। कभी उन्होंने अपने कलम की सर क़लम नहीं होने दी, हर वक्त में अपनी कलम को बड़ी ही मजबूती के साथ चलाया करते थे, कभी अपने कलम की ख़ुद्दारी और जमीर को कम नहीं होने दिया।
असरार जामई जी की शायरी में चार किताबें भी प्रकाशित हो चुकी हैं। युवावस्था में उन्हें भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद से अवॉर्ड भी मिल चुका है। अभी भी उर्दू शायरी के प्रति उनका प्रेम और समर्पण पहले की तरह ही मौजूद है और वे इसमें योगदान भी करते हैं।
वो दिल्ली में रहते हुए कभी दिल्ली के किसी भी दल से डरे नहीं, और जब दिल्ली पर बात आई दिल लगाकर क़लम चलाने की तो उनकी कलम से "दिल्ली दर्शन" उन्वान की ये नज्म़ निकली जो देश के मौजूदा वक़्त के हालात पर भी बिल्कुल फिट बैठती है....
असरार जामई जी की शायरी में चार किताबें भी प्रकाशित हो चुकी हैं। युवावस्था में उन्हें भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद से अवॉर्ड भी मिल चुका है। अभी भी उर्दू शायरी के प्रति उनका प्रेम और समर्पण पहले की तरह ही मौजूद है और वे इसमें योगदान भी करते हैं।
वो दिल्ली में रहते हुए कभी दिल्ली के किसी भी दल से डरे नहीं, और जब दिल्ली पर बात आई दिल लगाकर क़लम चलाने की तो उनकी कलम से "दिल्ली दर्शन" उन्वान की ये नज्म़ निकली जो देश के मौजूदा वक़्त के हालात पर भी बिल्कुल फिट बैठती है....
"दिल्ली नई पुरानी देखी
ख़ैर-ओ-शर हैरानी देखी
कुर्सी की सुल्तानी देखी
धोती पर शेरवानी देखी
बिन राजा के राज को देखा
भारत के सरताज को देखा
मंत्री महराज को देखा
उल्टे-सीधे काज को देखा
कुर्सी है अब तख़्त के बदले
नर्मी है अब सख़्त के बदले
सालिम है अब लख़्त के बदले
बख़्त नहीं कम-बख़्त के बदले
एक से एक नज़ारे देखे
झरने और फ़व्वारे देखे
दिन में चमके तारे देखे
कारों में ना-कारे देखे
लोक-सभा के अंदर देखा
जोक-सभा का मंज़र देखा
एक से एक मछन्दर देखा
आदमी जैसा बंदर देखा
ख़ून फ़साद और दंगा देखा
धुन वाला भिक-मँगा देखा
कपड़े पहने नंगा देखा
बिल्ला देखा रंगा देखाश
शर-पंडित कठमुल्ला देखा
रामभगत अबदुल्लाह देखा
सूखी घास का पुल्ला देखा
बे-रस का रस-गुल्ला देखा
बूट-क्लब पर धरना देखा
कुछ नहीं कर के करना देखा
कहना और मुकरना देखा
हिम्मत कर के डरना देखा
कॉलोनी और बस्ती देखी
ऊँचाई और पस्ती देखी
दौलत की सरमस्ती देखी
इज़्ज़त सब से सस्ती देखी
कोठे देखे ज़ीने देखे
लुच्चे और कमीने देखे
सब ने सब के सीने देखे
दिल के दर्द किसी ने देखे?
शहनाई और बैंड भी देखा
ङंङवत और शेक-हैंड भी देखा
दिल्ली में इंग्लैण्ड भी देखा
सरवेंट कम हज़बैंड भी देखा
उर्दू का इक़बाल भी देखा
और उस को पामाल भी देखा
उर्दू-घर का हाल भी देखा
'ग़ालिब' के घर टाल भी देखा
उर्दू के ऐवान गए हम
ले कर कुछ अरमान गए हम
देखते ही क़ुर्बान गए हम
बिज़नेस करना जान गए हम
नेता आनी-जानी देखे
जाहिल और गियानी देखे
सिंधी और मुल्तानी देखे
क्या क्या हिन्दोस्तानी देखे
एम-पी बिकने वाले देखे
पी-एम ढीले-ढाले देखे
आफ़त के परकाले देखे
जीजा बनते साले देखे
नर के सर पर नारी देखी
बे-सर की सरदारी देखी
अय्यारी मक्कारी देखी
काँटों की फुलवारी देखी
नाक रगड़ने वाले देखे
बाँस पे चढ़ने वाले देखे
गोरे जैसे काले देखे
भोले जैसे भाले देखे
राज के राज दुलारे देखे
पेट की मार के मारे देखे
या'नी कुछ बेचारे देखे
दोनों हाथ पसारे देखे
कूचा और बाज़ार को देखा
नादिर-शाह नादार को देखा
हँसते हर मक्कार को देखा
रोते इक फ़नकार को देखा
घर उन का बाज़ार है उन का
होटल उन का बार है उन का
टीवी से प्रचार है उन का
जो कुछ है 'असरार' है उनका
~ असरार जामई
____________एक वक़्त ऐसा भी आया कि कांग्रेस सरकार के नकारात्मक कामों के खिलाफ़ लिखी गई उनकी नज्म़ों को पढ़ने के बाद कांग्रेस सरकार के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने उनको अपने पास प्रधानमंत्री दफ़्तर में बुलाया और ख़ुद के ख़िलाफ़ लिखी हुई नज्म़ों को ख़ुद सुना, उसी बाग़ी शायर असरार जामई साहब से जिन्होंने नज्म़ लिखी थी।
हिंदुस्तान ऐसे बाग़ी शायरों का देश रहा है और उसी तरह खुद्दारी से भरे रहनुमाई करने वाले भी हिन्दुस्तान की गद्दी पर रह चुके हैं________ मगर आज हालात क्या हैं आप खुद देख रहे हैं। ना ही वो बाग़ है और ना ख़ुद्दारी! हालात तो आपको जामई साहब की नज्म़ को पढ़कर समझ में आ ही गया होगा।
ख़ुदा हमारे देश की हिफाज़त फरमाए यही दुआ है मेरी!
आमीन!
-Sakib
Thoughtful thought...and great poet Asrar g k liye Duaen.....!
ReplyDeleteThoughtful thought ...and great poet Asrar g ko duaen....
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