फूलों की कलियाँ जब खिल रही होती हैं तो वो एक नई दुनिया में अपनी आंखें खोल रही होती हैं जैसे हम इंसान खोलते हैं, जैसे दुनिया के हर सांस लेने वाले जीवधारी खोलते हैं। फूलों की कलियों और हमारी आंखों की पुतलियों की कहानी कुछ मेल खाती है क्या? शायद हां! लेकिन काफी और चीज़ें और हालात भी हैं जो उनकी और हमारी परिस्थितियों को दो दृश्य बना देते हैं।
जब हम खिल रहे होते हैं यानि कि जब हम अपने क़दमों को अपने सपनों के पूरा करने की ओर बढ़ा रहे होते हैं तो हम रास्ते में थकते हैं, हम हताश होते हैं, हमें भूख लगती है, प्यास की शिद्दत महसूस होती है, कड़ी धूप का सामना होता है, बड़ी भूख का खात्मा होता है, जैसे लहरों का आना होता है या फिर शहरों का जाना होता है,कई-कई शहर गुजर जाते हैं हमारे रास्तों में, बारिशों का सामना होता है और हर तरह की बारिशों कि सामना होता है वो चाहे दुख की बारिश हो या सुख की या फिर पानी के बूंदों की बारिश हो। कभी-कभी छाया का साया भी मिल जाता है जिससे हमें कुछ सुकून की रंग-बिरंगी हवाएँ भी मिल जाती हैं, उन हवाओं में छिपी अद्रश्य दवाएँ और दूआयें भी तक मिल जाती हैं, लोगों का सहारा मिले या ना मिले लेकिन खुदा सहारा मिल जाता है, हर तरह का नज़ारा मिल जाता है, और चलते-चलते एक दिन समंदर का किनारा भी मिल जाता है।
फूलों की कलियों का भी सफर कुछ इसी तरह ही होता है बल्कि मुश्किलें कुछ ज्यादा ही रहती हैं उनके सफर में, उन पर हमारे हांथों का ख़तरा भी मंडरा रहा होता है, उनकी महकती फज़ाओं में तमाम तरह के और भी हमलावरों का साया मंडरा रहा होता है लेकिन हममें और फूलों की कलियों में जो खिल रही होती हैं उनमें फर्क क्या होता है - उनमें बस फर्क इतना होता है कि उनको सिर्फ खुद से उम्मीद होती है, उनको सिर्फ खुद से ताक़त मिलने का हौंसला होता है, वो किसी और से कुछ मांगने नहीं जाते बल्कि देते ही रहते हैं। धूप,बारिश,सूखा,आंधी,अत्याचार तमाम तरह की मुश्किलों का सामना अकेले बिना डरे करते चले जाते हैं, वो हमारी तरह किसी और से उम्मीद नहीं पालते, वो हमारी तरह किसी और से मदद मांगने नहीं जाते,वो हमारी तरह किसी और के आने का इंतज़ार नहीं किया करते, वो हमारी तरह अकेले होने का बहाना लेकर अपने क़दमों को रोक नहीं देते, वो हमारी तरह अकेला रहने पर भटक नहीं जाते _____वो अपना सफ़र मुसलसल जारी रखते हैं कुछ भी हो जाए! इसलिए मेरी क़लम ने कहा~
धूप से छांव से मिलते जाना सदा,
और जैसी कली खिलते जाना सदा!
तो आज से कोई मिले या ना मिले क़दम बढ़ाते रहना है, किसी के आने का, किसी के साथ का इंतज़ार नहीं करना है, हाँ! अगर कोई आ रहा है तो साथ ले लो वरना सफ़र जारी रखो मुसलसल जारी रखो!
©SakibMazeed
Comments
Post a Comment