दिवाली एक ऐसे दिन को मनाई जाती है जिस दिन अयोध्या के राजा 'मर्यादा पुरुषोत्तम राम' अपने चौदह वर्ष के वनवास के बाद वापस आए थे और अवाम ने घी के दिओं को जलाकर आपका इस्तक़बाल किया था.
दीवाली महज कुछ दीपों को जलाने भर का त्योहार नहीं है बल्कि इसका महत्व बहुत सारे अन्य पहलुओं से और भी बढ़ जाता है___दिवाली स्वच्छता और प्रकाश का पर्व है, उम्मीद और आस का पर्व है, अज्ञानरूपी अंधकारों के नाश का पर्व है, समाज के लोगों में तथा देश में मिठास का पर्व है - इसलिए सफाई करिये तन की, मन की, उपवन की और अपने घररूपी चमन की. अपनी और नाउम्मीदियों की उम्मीद जगाइए, मिठाईयाँ खाइये और खिलाइए तथा उसकी मिठास परिवार के, समाज के, देश के, दुनिया के दिलों- दिलों तक पहुँचाइए क्योंकि आज के वक़्त बहुत ज़रूरत है दिलों के मिठास की. दिओं को जलाइए तथा ज्ञानरूपी रौशनी का एक ऐसा सिलसिला बनाइए जिससे जगमग हो जाय आपका घर-द्वार, हर इक बहार,समाज एवं देश में प्यार और सारा संसार.
हाँ! एक और ख़याल का ख़्याल रखिए... दिवाली का त्योहार हमारे देश में एक प्रमुख खरीददारी का प्रतीक है अतः खरीददारी के वक़्त उस तबके का भी ख़्याल रखा जाय जिसकी उम्मीदों का दामन आपकी आमद का इंतज़ार करता रहता है, जो अपने ख़्वाबों की मंज़िलों को मिट्टी के उन छोटे-छोटे दीपों में समेट कर लाता है जिसका आकार उनके खुद के हांथों द्वारा ढाला गया होता है, जिनका प्रचलन आज के टेक्नोलॉजी के दौर में बहुत ही कम स्तर पर देखने को मिलता है. बाज़ार जाने पर ये बात याद रहे कि इन मिट्टी के दीपों को भी अपने शाॅपिंग कार्ट का एक अहम हिस्सा बनाते हुए वापस आना है, उन मिट्टी के छोटे दिओं को भी अपने साथ लाना है जिन दीपों के वजूद पर ही हमारे अज़दादों ने दिवाली जैसे बड़े पर्व की नींव रखी, जिसके नाम पर रौशनी के इस पर्व का नाम दीपावली (दीप+आवली) पड़ा.
दिवाली के इस पर्व को भारत में 'सत्य की जीत और झूठ का नाश' के नाम से भी संबोधित किया जाता है जिससे इस पर्व का दायरा और भी बढ़ जाता है साथ ही धर्म, जाति, मज़हब जैसे बंधनों को तोड़ते हुए इसका असर अंधकारों के ज़िगर को चीरते हुए रौशनी और उजाले की पेशकश करते हुए सत्य की जीत तथा झूठ पर टिकी हर एक मंज़िल में कंपन ला देने का माना जाता है कयोंकि वैसे भी अंधकारों को दूर करने के लिए शाम को नमाज़-ए-मग़रिब के वक़्त हर रोज़ घरों में उजाला करना सिर्फ किसी एक धर्म या मज़हब का काम नहीं, हम सबका है.
दीप जलाइए रौशनी फैलाइये, मिठाई खाइये और मुझे भी खिलाइए मिठास फैलाइए.🕯
©SakibMazeed
बहुत खूब...
ReplyDeleteयूं तो हर बार दिवाली आती है चली जाती है चली जाएगी, मगर...!
दिये गर दिलों में जलें ज्ञान के,प्यार के और सौहार्द्र के तो कुछ बात हो...!!
इन शब्दों के दीपक ने कई ऊर्जावान दीप जला दिया...मन के आंगन में.....🪔
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ReplyDeleteBahut hi badhia, sakib bhai🤗
ReplyDeleteWish you a very happy diwali 🥳 ❤️ 🤗
Bhut khoob 🤗
ReplyDelete🪔🪔🪔
Very nice thoughts
ReplyDeleteबिल्कुल सही बात कही है brother...
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