बरसों-बरस by SakibMazeed

क्या कहूँ मैं तुझे जाने वाले बरस
जा रहा है तो जा इतना सुनता जा बस

लिख रहा हूँ  क़लम बोलने वाली है
तेरे पन्ने ज़रा खोलने वाली है
तूने जैसे ही दुनिया में दस्तक दिया
चल रहे काल ने अपना मस्तक दिया
चारों जानिब हवाएँ बदलने लगीं
सारी दुनिया की उम्मीदें ढलने लगीं
सुनते जाओ कि फिर आगे क्या-क्या हुआ
हमने है लिस्ट में जो बनाया हुआ
आते ही वो हवा सरसरी आई थी
ठंड का था क़हर जनवरी आई थी

जामिया एएमयू हमने भूला न था 
दर्द अंदर ही था हमने खोला न था
एक दिन शाम को एक ख़बर आ गयी
देखते ही लगा इक लहर आ गयी 
बात दिल्ली कि थी रात दिल्ली की थी
हार भारत की थी मात दिल्ली की थी
पूछती है क़लम ऐसा कैसे हुआ
जो जेएनयू में दंगों के जैसे हुआ
दिख रहा था लहू, दिल बिखरता हुआ
लाॅ एंड आॅर्डर का सम्मान मरता हुआ
आजतक दोषियों को सजा ना मिली
सारे कोमल हैं गायब रजा ना मिली
चर्चा बढ़ती गयी हर गली आ गयी
दीपिका आई और खलबली आ गयी
दर्द थामा उन्होंने और महसूस किया
झेलना भी पड़ा उनको जो कुछ किया

वक़्त चलते हुए जैसे आगे बढ़ा 
तेज़ तूफ़ान आया और उससे लड़ा
फेंक कर भीड़ में जाल ऐसी चली
हाँ हुक़ूमत ने इक चाल ऐसी चली
सारा मौसम सवाली सा लगने लगा
जो भी वादा था जाली सा लगने लगा
देश की आंखों में आब आने लगा 
हर गली रोड सैलाब आने लगा
हर नज़ारे ही ख़ुद हर ज़वाब हो गये
देश में इतने शाहीन बाग़ हो गये
सारी जनता मोहोब्बत में सिल सी गयी
देखकर इसको सत्ता थी हिल सी गया
बाग़ को नफ़रती आग कहने लगे
और इस काल का दाग कहने लगे
ये ज़हर चारों जानिब से बोया गया
सब का सब पानी में था डुबोया गया

वर्दियां चुप थीं क़ानून नंगा हुआ
देखते- देखते दिल्ली दंगा हुआ 
कितनों की किस्मतें ख़ाक़ कर दी गयीं
सपनों की सीढ़ियां राख कर दी गयी
इस क़हर के लिए हर शहर के लिए

याद जो बन गया उम्र भर के लिए
पस्त दुनिया और हर एक कंट्री हुई
जब कोरोना की लाइफ में एंट्री हुई
हर चहल हर पहल मंद होने लगे
खुद ही लोगों के मुंह बंद होने लगे
लेकिन भारत में तो हाल खस्ता हुआ
यहाँ का मीडिया बहुत सस्ता हुआ
ऐसे ऐसे ही खुशफहमी पाली गयी 
ग़लतियाँ जमातियों की निकाली गयी
हर जगह कोविड से बंदी होने लगी
अर्थव्यवस्था में भी मंदी होने लगी
हर जगह हर तरफ जलजले मच गये
सारी सड़को पर अब वलवले मच गये
लोगों को याद अब गाँव आने लगे
टूटा पुल काम अब नाव आने लगे
रेल की पटरियाँ सूनी होने लगीं
रात दिन मुश्किलें दूनी होने लगीं

दुनिया के कुछ सितारे भी धूमिल हुए
वक़्त के साथ लड़ने में चोटिल हुए
वो जो किरदार में दिखा गाढ़ा सदा 
बनके इरफान था वो दहाड़ा सदा
यूँ ही हंसते हंसाते ही शांत हो गयी
चेहरे की मुस्कुराहट सुशांत हो गयी
यूँ अचानक जाम-ए-मौत एक रोज पी गयी
फिल्मी दुनिया से इक दिन सरोज जी गयी
दुनिया में दुनिया के देखो मेले बचे
साजिद वाजिद में साजिद अकेले बचे
अल्का जी जो थिएटर के दिग्गज रहे
उनके खातिर ज़मीं सिर्फ दो गज रहे
सारे घावों पे मरहम मले जाएंगे
ऐसा सोचा था किसने चले जाएंगे 
सोचो कैसे वो दुनिया की चाहत गयी
देखते-देखते सांस-ए-राहत गयी
पूरा इंदौर सूना सा पड़ता गया 
वक़्त लेकिन नयी कील जड़ता गया
जो उजाले थे भरपूर साहब गये 
आया ग़म जब ऋषि कपूर साहब गये
सुब्रमण्यम जी दुनिया  विदा कह गए
और प्रणब दा भी यूँ अलविदा कह गए

जो भी होना था परिणाम फल हो गया
निर्भया केस लेकिन सफल हो गया
अयोध्या में नये युग का आरंभ हुआ
मस्जिद और मंदिर का शुभारंभ हुआ
रोटियां भी हुक़ूमत ने सेंकी यहाँ
जनता में ढेरों चिंगारी फेंकी यहाँ
हिन्द में लेकिन सब कुछ संभलता गया
आपसी भाईचारा भी पलता गया 
यूपी सरकार लेकिन सवालों में है
देखो ये फंस रही ख़ुद के जालों में है
बोला एससी ने तो आप फील हो गये
बच्चों की दुआओं के कफील हो गये
हाईकोर्ट ने तो हो करके नाराज़ कहा 
यूपी में चल रहा है जंगलराज कहा
नहीं हुआ था जो बरसों बरस वो हुआ
यहाँ कानपुर हुआ और हाथरस हुआ
और लबों पर तो ताले लगाए गए
बोलने पर थे भाले लगाए गए
लेकिन बाग़ी बग़ावत से चलते रहे
जो दिये सच के थे वो तो जलते रहे
बाग़-ए-जन्नत भी अरसों तक खामोश था 
दर्द में सारा कश्मीर मदहोश था 
कोई पूछे भी जो दर्द झेला गया 
या यही सोचोगे कि झमेला गया
अपनी माटी थी जो अपनी माटी रही
लेकिन ख़बरों में गलवान घाटी रही
ग़म भी आया था दिल में कुछ ऐसा हुआ
ऐ हुक़ूमत बता दे क्यों ऐसा हुआ

साल का आखिरी पल भी तारीख़ी है
बह रही है यहाँ जो हवा तीखी है
देश का सारा धन अब है खुदरा हुआ
अन्नदाता सड़क पर है उतरा हुआ 
रहनुमाओं सुनो ये फसादी नहीं 
अन्नदाता हैं आतंकवादी नहीं 
ये ही भोजन दिये ये निवाला दिये
लेकिन तुम इनको ये कैसा माला दिये
जिसको पहनें तो फांसी भी बन सकता है
और ये काली खांसी भी बन सकता है
भूख कम करने का जब इनका फर्ज है
मान ले ऐ हुक़ूमत तो क्या हर्ज है
ऐ हुक़ूमत यूँ तू मज़ा मारक बना 
और नये साल को भी मुबारक़ बना
लिख चुकी है क़लम इतना लिखना ही था
जो दिखाया गया इतना दिखना ही था 
देखते जा वरना जाएगा तू तरस
जा रहा है तो जा इतना सुनता जा बस
क्या कहूँ मैं तुझे जाने वाले बरस
© SakibMazeed

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