सबके गाँधी || Mahatma Gandhi || Martyr's Day



30 जनवरी का दिन भी कहने को तो सभी दिनों की तरह ही है लेकिन इस दिन को भारत के इतिहास में काफ़ी दुखद तारीख़ के नाम से याद किया जाता है और 'शहीद दिवस' के रूप में मनाया जाता है क्योंकि इसी तारीख को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी। उनकी पुण्यतिथि के दिन देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जैसी बड़ी हस्तियां राष्ट्रपिता को राजघाट पर जाकर श्रद्धांजलि अर्पित करती हैं और उनके विचारों को याद किया जाता है।
‌महात्मा गांधी का पूरा नाम 'मोहनदास करमचंद गांधी' था लोग उन्हें प्यार से बापू बुलाते थे। गांधी जी की आरंभिक शिक्षा गुजरात में संपन्न हुई उसके बाद बाॅम्बे विश्वविद्यालय से पढ़ाई करने के उपरांत वकालत की पढ़ाई के लिए लंदन चले गए और वकील बनकर 1916 में हिंदुस्तान वापस आए तथा गोखले की सलाह से पूरे भारत  का भ्रमण किया और 1918 में 'चंपारण आंदोलन' से  स्वतंत्रता संग्राम में अपने अहिंसावादी सफ़र की शुरुआत की। इसके बाद वो अपनी आखिरी सांस तक देश
की भलाई के लिए जद्दोजहद करते रहे और 'असहयोग आंदोलन','सविनय अवज्ञा आंदोलन','भारत छोड़ो आंदोलन' जैसे बड़े ब्रिटिश विरोधी आंदोलन का नेतृत्व किया। 'भारत छोड़ो आंदोलन' उनके जीवन का सबसे बड़ा और सफल आंदोलन साबित हुआ जो ब्रिटिश भारत का अंतिम आंदोलन था।
गांधी जी ने अहिंसा के रास्ते को अपनाया, उनको अहिंसा का पुजारी कहा जाता है लेकिन गाँधी जी आगे कहते हैं कि अगर मुझे कायरता और हिंसा में से किसी एक को चुनना हो तो मैं हिंसा चुनूंगा कायरता नहीं. इसके उदाहरण के रूप में 1942 के 'भारत छोड़ो आंदोलन' को देखा जा सकता है. वो अपने विचारों और आदर्शों से सारी दुनिया में एक संत के रूप में जाने गये, एक ऐसी शख्सियत जिसके तन पर एक धोती और चलते समय सहारे  के लिए एक सोंटे के अलावा कुछ नहीं होता था, उसके बाद भी ब्रिटिश हुक़ूमत उनकी परछाईं से भय खाया करती थी।
गांधी जी अपने समकालीन राष्ट्रवादियों से बिल्कुल भिन्न थे और हमेशा ज़मीन से जुड़ कर मुद्दों पर बात की। हम उनको प्रारंभिक दौर में स्थानीय स्तर के स्थानीय मुद्दों पर आधारित आंदोलन का नेतृत्व करते देखते हैं जहां शहर केन्द्रित आंदोलन  गांव केंद्रित बनता दिखता है इस सिलसिले में हम चंपारण, खेड़ा जैसे आंदोलन को देख सकते हैं। उन्होंने इन आंदोलनों के ज़रिए किसानों और मजदूरों के मुद्दों को राष्ट्रीय आंदोलन की मुख्यधारा में जोड़ने का प्रयास किया, साथ ही अपने अख़बारों हरिजन,यंग इंडिया और नवजीवन के माध्यम से जनता से सीधे संवाद भी करते रहे और उनके आंदोलन में सबसे खास बात यह रही जो उनसे पहले नहीं थी कि उनके आने के बाद से आम लोगों की सक्रियता बड़े स्तर पर देखने को मिलती है। उन्होंने हिंदुस्तान की अवाम की क्षमता को पहचाना और उसके आधार पर आंदोलनों का नेतृत्व किया। गांधी जी ने पश्चिमी सभ्यता से प्रेरित उपभोक्तावादी और स्वार्थ केंद्रित तथा व्यक्तिवादी समाज की हमेशा आलोचना की। उन्होंने अपने तमाम प्रकार के  आंदोलनों में भी समाज के सभी वर्गों को साथ लिया और सबके लिए बराबर अधिकार मिलने की बात करते रहे। उनका मानना था कि उद्योग केंद्रित विकास माॅडल की वजह से गांवो में कृषि पर आधारित समाज की उपेक्षा नहीं होनी चाहिए।
गांधी जी जो योगदान अपने सिद्धांतों और विचारों से उन दिनों दिए उसकी प्रासंगिकता आज भी देखी जा सकती है जो उनकी दूरदर्शिता को प्रदर्शित करती है.
उनका मानना था कि जनविरोधी सरकार या क़ानून के विरुद्ध जनता को अहिंसक प्रदर्शन का अधिकार होना चाहिए,जो आज के दौर में वक़्त की मांग हैं।
गांधी जी सभी धर्मों का सम्मान करते थे और उनका कहना था कि हमें सभी धर्मों को समझना चाहिए और सम्मान करना चाहिए। अगर हम आज के समाज को देखें तो सोशल मीडिया के इस दौर में धर्म और जाति के आधार पर समाज के कुछ हिस्सों में चिंताजनक हालात देखने को मिलते हैं।
उनका मानना था कि सरकार को ऐसी नीतियां बनानी चाहिए जिनसे समाज के सभी वर्गों का विकास हो क्योंकि भारतीय समाज में हर तरह के लोग निवास करते हैं, साथ ही उन नीतियों से प्रकृति को कम-से-कम नुकसान हो क्योंकि अगर प्रकृति का नुकसान होगा तो हमारा भी नुकसान होना तय है।
गांधी जी ने अहिंसा को सबसे बड़ा धर्म बताया जो सिर्फ जन मानस से ही संबंधित नहीं था उन्होंने कहा कि किसी भी प्रकार के जीव के साथ हिंसा करना पाप है इसलिए हमें अहिंसा के रास्ते पर ही चलना चाहिए।
उन्होंने सत्याग्रह चलाया,जिसका मतलब है सत्य के लिए आग्रह, सत्य की रक्षा हेतु अहिंसक कार्य करना और दृढ़तापूर्वक सत्य के मार्ग का अनुसरण करना, अपने विरोधियों के प्रति घृणा का भाव ना रखकर प्यार और भाईचारे की भावना रखना। गांधी जी राज्यहीन समाज की बात करते थे, ऐसा समाज जिसमें जनता सरकार पर आश्रित न हो क्योंकि उनका मानना था कि राज्य हिंसा का संगठित रूप होता है। उनका कहना था कि राज्य का काम सिर्फ़ क़ानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए होना चाहिए। राज्य अपनी शक्तियों के कारण स्वयं साध्य बन जाता है और व्यक्ति राज्य का साधन मात्र जबकि व्यक्ति की स्वतंत्रता साध्य है। व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास हेतु स्वतंत्रता आवश्यक है लेकिन राज्य विधि के माध्यम से स्वतंत्रता का अतिक्रमण करती है। गांधी जी ने स्वराज्य और रामराज्य को महत्वपूर्ण सिद्धांत के रूप में बताते हुए एक आदर्श समाज की तरह परिभाषित किया, वो कहते हैं- स्वराज्य का आशय खुद पर नियंत्रण से है व्यक्ति या किसी संस्था द्वारा निर्देशित नहीं। स्वराज्य के रूप में उन्होंने एक ऐसे समाज की परिकल्पना की जहां व्यक्ति अपने स्वयं के नैतिक नियमों से संचालित हो । एक ऐसा राज्य हो जहां व्यक्ति को अपने अधिकारों के बारे में जानने की आवश्यकता न हो बल्कि जहां सदाचार के नियमों पर आधारित कर्तव्यों के पालन पर बल दिया जाएगा
गांधी जी रामराज्य के बारे में कहते हैं- रामराज्य का मतलब यह है कि उसमें गरीबों की संपूर्ण रक्षा होगी, सारे कार्य इस ढंग से किए जाएंगे जिसमें लोकमत का हमेशा आदर किया जाएगा। हमें जिन गुणों की आवश्यकता है वो भारत के सभी वर्गों के लोगों- स्त्री, पुरूष,बालक और बूढ़ों तथा सभी धर्मों के लोगों में मौजूद है, दु:ख मात्र इतना है कि सभी उस गुण को पहचानते नहीं हैं। सत्य, अहिंसा, मर्यादा-पालन, वीरता, क्षमा, धैर्य आदि गुणों का हममें से प्रत्येक व्यक्ति परिचय दे सकता है।
हम अगर गांधी जी के समूचे जीवन को देखें तो वह किसी एक या फिर कुछ समूहों के लिए नहीं थे वो संपूर्ण समाज को साथ लेकर चलने वाले एक ऐसे व्यक्ति थे जिनको हर समाज के हर तरह के लोगों ने अपने गले से लगाया। उनकी एक आवाज़ पर पूरे देश की हवाओं का रुख बदल जाता था। उन्होंने भारतीय समाज के लिए इस तरह से समर्पित होकर कार्य किया कि उनके सक्रिय होने के समय से लेकर उनकी मृत्यु तक के काल (1919-1948) को 'गांधी युग' के नाम से जाना जाता है।
उन्होंने अपने जीवन में जो कुछ भी किया और जिस तरह से उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी सत्य और अहिंसा के मार्ग को समर्पित कर दी उसको सिर्फ एक लेख के माध्यम से बयान‌ नहीं किया जा सकता लेकिन इस बात से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनका जीवन कैसा रहा होगा, एक बार उनसे पूछा गया कि दुनिया के लिए आपका क्या संदेश है, तो उन्होंने बड़ी बेबाकी से जवाब दिया - "मेरा जीवन ही मेरा संदेश है।"

©Sakib

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