घाटों, श्मशानों में लाश ही लाश है
रहबरों को मगर वोट की प्यास है
मास्क सोशल डिस्टेंसिंग का रोना है गायब
वोट लेने की खातिर कोरोना है गायब
लाॅकडाउन लगा जहां चाहत हुई
वोट के नाम पर इनकी आहट हुई
रात दिन इनकी है जनसभा चल रही
आंखें खोलो चिता ही चिता जल रही
मौत के आंकड़े क्यों छिपाते हो तुम
जनता है जनता को क्यों सताते हो तुम
मानता हूं छिपा लोगे तुम आग को
सरजमीं पर पड़े जो हैं उन दाग को
चारों जानिब धुंआं पानी-पानी है सब
ऐ हुकूमत तेरी मेहरबानी है सब
पानी था पानी में ही ठहरे लोग थे
फिर भी झूठों के हर स्वामी खामोश थे
हां इसी देश में कुछ था यूं भी हुआ
कुछ को रखकर निशाने तुम खेले जुआ
खेल तुमने है खेला खिलाड़ी हो तुम
भारत मां को रुलाते अनाड़ी हो तुम
आज का है जो मंजर क्या वो ठीक है?
सपने खामोश हैं बोलती चीख है
शहर वीरान है पसरे सन्नाटे हैं
सूरज निकला है दिन में मगर रातें हैं
कितना भी आंखें मूंदो मगर शोर है
ज़लज़ले जैसी चीखें ही हर ओर हैं
दिख रहे सारे सिस्टम दगाबाज हैं
आजतक अन्नदाता भी नाराज़ हैं
रहनुमाओं सुनो ये फसादी नहीं
अन्नदाता हैं आतंकवादी नहीं
रहबरों तुम सवालों के घेरे में हो
तुम तो अपनी ही जालों के घेरे में हो
चीखती हैं उठी आह बतलाओ तुम
सल्तनत के शहंशाह बतलाओ तुम
पूछना है मुझे यूं कई बाते हैं
क्या हुए जो राहत कोष के खाते हैं
सारे वादे तुम्हारे कहां खो गए
क्या सभी आपके अपनों के हो गए
पूछने पर कई जंग हो जाती है
आपकी तो जुबां बंद हो जाती है
आज भारत के सपने हैं क्यों नम पड़े
बोलो क्यों अस्पतालों में बेड कम पड़े
नीति कोई नहीं हर जगह जिद हुई
हाॅस्पिटल की जगह मंदिर मस्जिद हुई
अपनी अवाम को क्या दिया आपने
हर जगह हिन्दू मुस्लिम किया आपने
क्यों हमारा शहर आज खामोश है
दर्द में हर इक उद्यान बेहोश है
दिल तो कहता है कि चीखकर बोल दूं
राज्य का राजा बिल्कुल फरामोश है
उनकी खातिर व्यवस्था है जो खास हैं
बाकी तो सब के सब दिखते बकवास हैं
घाटों श्मशानों में लाश ही लाश है
रहबरों को मगर वोट की प्यास है
©SakibMazeed
Email: sakibmazeed@gmail.com
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