विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस और भारतीय मीडिया || World Press Freedom Day and Indian Media



 दुनिया तक आसानी से कोई भी ख़बर या घटना की जानकारी पहुँचाने के लिए प्रेस सबसे सरल और सशक्त माध्यम है। प्रेस के इसी महत्व और उपियोगिता को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 3 मई को 'विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस' के रूप में घोषित किया गया है। प्रत्येक वर्ष विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की एक थीम होती है, और इस साल की थीम है – "लोगों के अच्छे के लिए सूचना"

 

यूनेस्को द्वारा 1977 से हर साल 3 मई को 'विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस' पर 'गिलेरमो कानो वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम प्राइज़' भी दिया जाता है। यह  पुरस्कार उस व्यक्ति या संस्था को दिया जाता है जिसने प्रेस की आज़ादी के लिए उल्लेखनीय कार्य किया हो। देखने वाली बात यह भी है कि आज तक भारत के किसी भी पत्रकार को यह पुरस्कार नहीं मिला है।

भारत अख़बारी पत्रकारिता के लिहाज से दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बाज़ार है, मार्च 2018 के आँकड़े के अनुसार आज भारत में लगभग एक लाख प्रकाशन Registrar of Newspapers of India के साथ पंजीकृत हैं। भारत में लगभग 892 न्यूज़ चैनल्स हैं।

भारत में प्रेस की स्वतंत्रता भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19 में भारतीयों को दिए गए अभिव्यक्ति की आज़ादी के मूल अधिकार से सुनिश्चित होती है। लेकिन भारत में प्रेस कितनी स्वतंत्र है इस बात का अंदाज़ा कुछ हद तक इस बात से लगाया जा सकता है कि आज तक यूनेस्को द्वारा किसी भी भारतीय पत्रकार को यह पुरस्कार नहीं मिला। पुरस्कार न मिलने का मतलब पूरी तरह यह नहीं है कि स्वतंत्रता मिलती ही नहीं लेकिन यह तो कहा ही जा सकता है कि भारतीय मीडिया शायद उतना स्वतंत्र नहीं है जितनी ज़रूरत है भारत को और भारतीय लोकतंत्र को।

 अगर विश्व स्तर पर रिलीज़ होने वाले आँकड़ों को देखा जाय तो पिछले दिनों not-for profit body, Reporters Without Borders द्वारा जारी किए गए World Press Freedom Index 2021 के अनुसार भारत दुनिया में प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में 180 देशों में से 142वें पायदान पर है। पिछले कई सालों से भारत की स्थिति में सुधार नहीं आया है। इस सूची में नॉर्वे पहले पायदान पर है। इस डाटा को देखने के बाद पता चल जाना चाहिए कि भारत में प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर सरकार या सिस्टम कितना गंभीर है और भारतीय पत्रकारों की सुरक्षा के मद्देनज़र यह आँकड़ा कितना ख़तरनाक है।

भारत में प्रेस स्वतंत्रता की इस स्थिति की वजह माने-जाने कई वरिष्ठ पत्रकार यह बताते हैं कि भारतीय पत्रकारिता पर हमेशा विचार हावी होता है, जबकि पश्चिमी देशों की बात की जाए तो वहां तथ्यात्मकता पर ज़्यादा जोर दिया जाता है। पत्रकारिता पर विचार के हावी होने से हमारे पत्रकारीय मूल्यों में कहीं न कहीं असर पड़ता है।

भारत में मीडिया को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का दर्जा दिया गया है। एक बार सोच कर देखिए कि अगर कोई छत चार स्तंभों पर टिका हो और उसका एक स्तंभ कमजोर हो जाए या टूट जाए तो उस छत की मजबूती कितनी बची रह जाएगी। भारत में मीडिया के स्वतंत्रता की स्थिति सिर्फ लोकतंत्र को नहीं कमजोर करती है, यह कमजोर करती समाज के उन वर्गों के सपनों को भी जो खुली आँखों से देखे जाते हैं, यह कमजोर करती है वैश्विक स्तर पर हिंदुस्तान की उस शान को जहां कभी प्रेस की स्वतंत्रता का पैमाना अज़ीमुल्लाह खान का अख़बार पयाम-ए-आज़ादी और राजाराम मोहनरॉय का समाचार पत्र बंगदूत हुआ करता था।

पत्रकारिता जल्दी में लिखा जाने वाला इतिहास है। मीडिया किसी भी समाज का आईना होता है और इस आईने का काम होता है समाज में घट रही एक-एक घटनाओं को रिपोर्ट करना, उसको जनता और दुनिया तक पहुंचाना।

"मैं आईना हूं दिखाऊंगा दाग़ चेहरे को

जिसको बुरा लगे वो सामने से हट जाए"

इसी तरह प्रेस का भी काम सरकार के द्वारा किए जा रहे कामों को जनता तक पहुंचाना तथा जनता के सवालों को सरकार से पूछना। सवाल...! लेकिन अगर ऐसा करने से सरकार रा.सु.का. लगा दे तो...अगर ऐसा करने सरकार जेल में डाल दे तो...अगर ऐसा करने से सरकार ईडी भेज दे तो...अगर ऐसा करने से सरकार किसी चैनल को परेशान करने लगे और चैनल को विज्ञापन देना बंद कर दे तो...अगर ऐसा करने से सरकार किसी चैनल को पूरी तरह से ब्वॉयकॉट कर दे तो...सरकार आपको तब तक परेशान करे जब तक आप हार न मान लें तो...?

आए दिन ख़बर आती है कि फेसबुक पर पोस्ट शेयर कर देने से पत्रकार पर एफआईआर, हाथरस के मामले पर रिपोर्टिंग करने से पत्रकार पर केस, किसान आंदोलन को कवर करने पर रिपोर्टर को जेल, सरकार से सवाल करने पर पत्रकार पर सरकारी पाबंदी... हाल ही में पिछले दिनों पत्रकार विनोद दुआ, सुप्रिया शर्मा, सिद्दीक कप्पन, अर्नब गोस्वामी, राजदीप सरदेसाई, मृणाल पांडे, ज़फर आगा, परेश नाथ, अनंत नाथ, सदफ ज़फर, विनोद जोस, प्रशांत कनोजिया जैसे कई और भी अन्य पत्रकारों  को पुलिसिया और सरकारी दमन का शिकार बनाया गया। इस तरह के घटनाओं की फेहरिस्त बहुत लंबी हैं, लेख संक्षिप्त रखने के उद्देश्य से हम यहां सभी का ज़िक्र नही कर पा रहे हैं। ये तो उदाहरण मात्र हैं, इस तरह की तमाम सूचनाएं मुसलसल ख़बरों में पढ़ने को मिल ही जाती हैं।

ऐसी घटनाएं होने से क्या पत्रकारिता की स्वतंत्रता को बचाया जा सकता है...या फिर किस तरह से इस 142वें पायदान वाले ग्राफ को सुधारा जा सकता है?

"ज़मीनी सच, छिपा जो झूठ सरकारी दिखाना है,

ज़ुबाँ पर तेज़ रख करके क़लमकारी दिखाना है."

©SakibMazeed

Comments

  1. हमारी आकांक्षाएं और दुआएं हैं कि हमारे देश में पत्रकारिता पुरानी स्थिति में वापस आए,और उसे वो अहमियत मिले जिसकी वह पात्र है।

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