आज़ाद थे आज़ाद हैं आज़ाद रहेंगे

 


आज़ादी अल्फ़ाज सुनते ही हमारे मन में हवा को चीरते हुए उड़ते परिन्दों का खयाल आता है, बहते जल और आने वाले कल का खयाल आता है, कश्मकश से भरी इस ज़िंदगी में आजादी से आनन्द तो कमाल का आता ही है लेकिन कभी-कभी मरते हुए जिन्दों का खयाल भी आता है, जिनके  लिए दुनिया एक ज़िन्दान बना दी गई है। दुनिया की तारीख में कभी हमारे लिए भी ये कोशिश हुई थी कि हिन्दुस्तान को जिन्दान बनाकर रखा जाय। लेकिन हमारे देश में आज़ाद लहू से भरे हुए सरफिरों ने फिरंगियों का ये मंसूबा कामयाब नहीं होने दिया और बार-बार उनके बनाए हुए पिंजरे को तोड़कर खुद को आजाद करते रहे।

1947 के अगस्त महीने की ये वही 15 तारीख है जिस दिन हमारे पुरखों ने ब्रितानी हुकूमत द्वारा बनाए जा रहे पिंजरे को राख में मिला दिया और पूरे हिन्दुस्तान को आज़ादी की हवाओं से सराबोर कर दिया। उसके बाद तो हम पानी और हवा की रफ्तार में सारी बाधाओं को तोड़ते-मरोड़ते ऐसे आगे बढ़े कि कभी पीछे मुड़कर देखना ही नहीं हुआ. भारत का संविधान बनाने लेकर परमाणु संपन्न होते हुए टोक्यो ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने तक, हम उसी आज़ाद तेवर के साथ मुसलसल विश्व इतिहास में अपना नाम दर्ज कराते हुए आगे बढ़ते रहे, और मुस्तकबिल में भी बढ़ते रहेंगे.

अतीत में हमारी आज़ादी को छीनने की हर मुमकिन कोशिशें हुईं। अंग्रेजों के द्वारा हमें बांटने की कोशिश की गई, फूट डालकर हमें कमजोर करने की कोशिश की गई, हमारी पहचान को मिटाने की कोशिश की गई, हमारे पुरखों के द्वारा बनाए और स्थापित किए गए धरोहरों को झगझोरने की कोशिश की गई और हिन्दुस्तान के रंग-बिरंगे मौसम की चमक को धूमिल करने की लगातार कोशिश की गई। लेकिन तमाम तरह के मजहबों, रिवायतों और भाषाओं में मिलकर हर बार हम ऐसा जवाब दिए कि उनके सामने चकाचौंध की स्थिति पैदा हुई और उनकी हर कोशिश कमजोर साबित हुई। 

ऐसा नहीं है कि आज चुनौतियां नहीं हैं, बल्कि हमें आज भी कई बार आज़ादी के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है। हमारी आज़ादी को कुचलने की ताकतवर कोशिशें हमेशा से होती रही हैं और आज भी होती हैं, लेकिन हम कल भी आजाद थे, आज भी हैं और आने वाले वक्त में भी रहेंगे। हमारे दामन में ये जो आजादी नाम का ध्रुव तार है, जिसके सहारे हम रुतबे के साथ किसी भी ताकत से आंख मिलाने की ताकत रखते हैं, असल में ये बड़ी जद्दोजहद के बाद हासिल हो सकी है। इसलिए हमें इसको किसी भी हालत में बचा कर रखना ही होगा। 

हमें संविधान में बनाए हुए कानूनों के दायरे में रहकर बचाकर रखना होगा अपनी बोलने की आज़ादी, लिखने की आज़ादी, पढ़ने की आज़ादी, पहनने की आज़ादी, खाने की आज़ादी और सोचने की आज़ादी भी, हमें ज़िंदा रखनी होगी। इस पर पहरे लगेंगे, जख्म भी गहरे लगेंगे लेकिन हमें अपने मरहम से जख्मों पर उपस्थित हर तरह के वायरस को मिटाना होगा क्योंकि अगर हम आज़ाद नहीं होंगे तो सिर्फ एक ज़िंदा लाश होंगे। और लाश ज़िदा होकर भी लाश ही होती है। हमें न तो ज़िंदा लाश बनना है और न ही बकवास बना है। हमें रहना है तो आजादी के साथ रहना है।

©मोहम्मद साकिब मज़ीद

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